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लाल किताब का इतिहास – History of Lal Kitab

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अठारहवीं सदी की बात है जब वर्तमान पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त में पं. गिरधारी लाल जी शर्मा अंग्रेजी हुकूमत में सरकारी पद पर आसीन थे. तो उस समय लाहौर में जमीन खोदने सम्बन्धित कार्य चल रहा था. खुदाई के दौरान उस जमीन में से ताम्बे की पाटिकाएं प्राप्त हुईं जिन पर उर्दू एवं फारसी भाषा में कुछ खुदा हुआ था.


उन पाटिकाओं को पं. गिरधारी लाल शर्मा जी के पास लाया गया जो कि ज्योतिष एवं कर्मकाण्ड (Jyotish And Karma Kand) के प्रकांड विद्वान थे तथा उनकी उर्दू, फारसी एवं संस्कृत पर भी अच्छी पकड़ थी. कई वर्षो तक पं. जी ने इन पाटिकाओ पर लगनपूर्वक शोध किया, जिससे यह ज्ञात हुआ कि ये पाटिकाएं ज्योतिष से सम्बन्धित लाल किताब (Lal Kitab) ग्रन्थ से हैं.


मुगल साम्राज्य के दौरान भारतीय ग्रन्थों-वेद (Indian Literature-The Veda, उपनिषद (Upanishad), दर्शन एवं ज्योतिष (Philosophy And Astrology) पर काफी शोध हुआ था विशेषकर अकबर और दारा-शिकोह के जमाने में. उसी शोध के फलस्वरुप लाल किताब अस्तित्व में आयी (Existence Of Lal Kitab), इसमें गणित की अपेक्षा फलित अधिक महत्वपूर्ण (Importance On Prediction) एंव व्यावहारिक था जिसे अरब देशो में काफी सराहा गया. प.गिरधारी लाल जी ने अगाध (अथक) परिश्रम के उपरान्त इन पाटिकाओ का उर्दू व फारसी से हिन्दी भाषा में अनुवाद किया इसके पश्चात सन 1936 में प. रुप चन्द्र शर्मा जी ने इसे लाल किताब के नाम से अरबी भाषा मे लाहोर से प्रकाशित किया जिसे वहां पर काफी प्रसिद्धि प्राप्त हुई, इसका मुख्य कारण था ग्रहो के उपायो के रूप में वो सरल टोटके जिन्हे आम व्यक्ति बिना किसी दूसरे की सहायता के स्वंय ही कर सकता था।


हालांकि इस किताब के बारे में समाज में तरह-2 की भ्रान्तियाँ प्रचलित (Superstition About Lal Kitab) हैं. कुछ लोगों का कहना है कि पहले आकाशवाणी हुई फिर इस ग्रन्थ की रचना हुई तथा कुछ अन्य का कहना है कि इस किताब की मौलिक रचना अरब के विद्वानो द्वारा की गई। परन्तु सत्य यह है कि मुगल शासन के दौरान यह विद्या भारत से अरब देशो में गई तथा वहाँ के विद्वानो ने अपनी इच्छा एंव सुविधा के अनुसार इसके मौलिक स्वरूप में परिवर्तन किया।


सैद्धान्तिक रूप से यदि हम लाल किताब का विवेचन करे़ तो पाएगें कि इसका वैदिक ज्योतिष (Vedic Jyotish) से बहुत अन्तर है। भारतीय(वैदिक) ज्योतिष (Indian Vedic Astrology) में लग्न की महत्ता (Importance On Ascendant) हे। जबकि लाल किताब में लग्न का कोई महत्व नही (No Importance Of Lagna In Lal Kitab), लाल किताब में मेष राशि को ही लग्न मान लिया जाता (Aries Is Treated as Lagna In Lal Kitab) है।


और लाल किताब का गणित भी अपनी अलग किस्म का ही (Mathematical Calculation Of Lal Kitab Is Different) है । जहां वैदिक ज्योतिष में एक और हम वर्ग कुण्डली (Varga Kundli) (नवांश, दशंमाश) (Nabamansh) Dashamansh) के आधार पर फलादेश (prediction) करने का नियम है वहीं लाल किताब में अन्धी कुण्डली (Andhi Kundli), नाबालिग ग्रहो की कुण्डली (Nabalig Kundali) बनाकर भविष्य फल बताया जाता है। लाल किताब में एक भाव (Bhav) की दूसरे भाव पर दृष्टि से सम्बन्धित नियम भी अनोखा है।


इन सब चीजो का विश्लेषण करने से एक बात जो प्रमुख रूप से उभर कर सामने आती है कि यदि लाल किताब के गणित एंव फलित (Phalit) पक्ष को नजर अन्दाज कर दिया जाऎ तथा ग्रह दोष (Grah Dosh) दूर करने के लिए जो सरल टोटके इसमें बताए गए है , यदि उन्हे किया जाऎ तो व्यक्ति लाल किताब से काफी हद तक लाभ उठा सकता है।


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